आज की नारी
इस पुरुष -परधान समाज में ओरत का रहना खासकर एक अकेली ओरत का जीवन -यापन करना बेहद मुश्किल हेआज हम आधुनिक युग में जी रहे हे .लेकिन ओरत के लिए इस समाज की परिभाषा व्ही हे जो आज से सालो पहले हुआ करती थी शायद इसीलिए पुराने जमाने में लोग नारी को घर तक ही सीमित रखते थे या उनके लिए घूँघट परथा अनिवार्य थी जो काफी जगहों पर आज भी हे …इसके पीछे हमारी कुटिल मानसिकता नही तो और क्या हे ? आज ओरत बाहर तो बहुत दूर की बात हे अपने खुद के घर में भी सुरक्षित नही हे .आज जमाना बदल चूका हे ,इस महंगाई के दोर में नारी को भी पुरुषो के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर चलना पड़ता हे ..वो एक और दायित्वा उठाने के लिए घर से बाहर निकली हे लेकिन वो कितनी सुरक्षित हे ?..पुरुषो के लिए तो परिस्थितिया वेसी ही हे जेसी पहली थी ,लेकिन ओरतो के लिए बदल चुकी हे .आज ओरत घर का काम भी करती हे और बाहर से आजीविका का प्रबंध भी कर रही हे ,लेकिन कितना अपने आप को सुरक्षित महसूस करती हे .घर से बहार निकलते ही उसे कोई पुरुष अपनी बहन ,बेटी या माँ के रूप में नही देखता ,इस सच्चाई को सभी जानते हे .आज जिस तरह से बलात्कार और छेड़खानी के मामले सामने आ रहे