माँ ब्रह्मचारिणी - अर्थ और कथा

  'ह्रीं श्री अम्बिकायै नमः'




मां दुर्गा 
हिंदू धर्म की प्रमुख देवी , कथा के अनुसार , माता भगवती दुर्गा ने महिषासुर नामक असुर के साथ 9 दिन तक युद्ध किया और फिर नवमी की रात्रि को वध किया।

आप सभी को नवरात्रि और नववर्ष की हार्दिक हार्दिक शुभकामनाएं।

नवरात्रि - मां दुर्गा की शक्ति को समर्पित नवरात्रि का व्रत करते हुए 9  स्वरूपों की पूजा की जाती हैं।

आज हम बात करेंगे द्वितीय दिवस में पूजी जाने वाली माता ब्रह्मचारिणी देवी जो तप की , त्याग ,सदाचार और संयम की वृद्धि हैं I
इनकी कहानी कुछ ऐसी हैं की सती माता जो शिव की धर्मपत्नी हैं , उनके मृत्यु के बाद उन्होंने देवी पार्वती के रूप में पुनर्जन्म लिया हिमायल की बेटी बन कर जिससे वो महादेव को गहरे तप से बाहर ला सके और विवाह कर सके।
नियति यह थी को उन दोनो को जो भी संतान होगी वहीं ताडिका सूर राक्षस का वध करती जिसने तीनों लोको में हाहाकार मचा रखा था । पुनर्जन्म होने के कारण पार्वती को कुछ ज्ञात नही था।
एक बार नारद मुनि हिमालय पर्वत से गुज़र रहे थे तब उनकी नजर माता पार्वती  पर पड़ी और वे तुरंत नीचे आये और उन्हें अपने  अस्तित्व के बारे में बताया कि उन्हें शिव को घोर तपस्या से जगाना हैं और उनसे शादी करनी हैं।
ये सुनते ही पार्वती ने अपने पिता को बताया और जंगल की ओर तप करने निकल गई  ।  बारिश, ठंड , गर्मी  सभी मौसम में बस धृढ़ता से तप करती रहीं ।
कई साल उझोने बस फल खाकर जीवन व्यतीत किया बाकी के कुछ हज़ार साल सिर्फ पत्ते और पानी में जीवित रहे । और फिर वो भी छोड़  दिया ।
पारणा का मतलब " पत्ते " होते हैं और माता ने पत्ते खाने भी छोड़  दिया इसलिए उन्हें "अपर्णा" के नाम से भी जाना जाता हैं
काफी हजार साल बीते और देवों का ध्यान गया , शिव जी का भी ध्यान गया और उन्होंने अपने घोर तपस्या से उठकर पार्वती की परीक्षा लेने की सोची ।
वे साधु के रूप में गए , माता एक बूढ़े साधु को देखकर इज्जत से झुक गई ।
साधु ने पार्वती के सामने शिव की काफी बुराई की और कहा उन्हें ये तप छोड़  देना चाहिए।
ये सब सुनते ही पार्वती ने आदर से उन्हें समझा दिया की वे शिव के बारे में एक शब्द भी नहीं सुनेंगी ।
इससे साधु अपने असली रूप में, शिव के रूप में आ गए और पहचान लिया की यहीं उनकी सती हैं, उनका पुनर्जन्म हुआ हैं। इस प्रकार शिव ने पार्वती को अपनाया।

माता ब्रह्मचारिणी - ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली।
इस देवी की कथा का सार यह है कि जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं होना चाहिए। मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्व सिद्धि प्राप्त होती है ।

इससे हमे साहस , धीरज और सादा जीवन जीने की सीख मिलती हैं।
और साथ ही यह भी की यदि सच्चा प्रेम शिव पार्वती जैसा हो तो मिलेगा जरूर चाहे युग कोई भी हो।

गौरीशंकर की कृपा आप पर बनी रहीं।
जय माता दी।
धन्यवाद, आपका दिन शुभ हो ।

Prerna Chauhan
BAJMC2

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