बिहार की दिवाली :छठ
छठ भारत में मनाया जाने वाला एक मात्र ऐसा पर्व है जिसे वैदिक काल से मनाया जा रहा है। छठ मगही, मैथिल और भोजपुरी लोगों का मुख्य पर्व है। यह उनकी संस्कृति हैं।
छठ की तिथि , अन्य नाम, मुख्य भारतीय राज्य।
* छठ का ये महापर्व दिवाली के छह दिन बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को बड़े धूम धाम से मनाया जाता हैं। यह चार दिनों तक चलता है।
* छठ को अनेक नामों से मनाया जाता है जैसे छठई, छठ व्रत, रनबे माय,डाला छठ आदि।
* यह पर्व भारत में मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, पूर्वी उत्तर प्रदेश ओर नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता हैं।
छठ के आरंभ की लोककथाएं:
* ऐसा माना जाता है कि माता सीता ने मुंगेर में छठ पर्व मनाया था। इसके बाद ही छठ महापर्व की शुरुआत हुई। इसीलिए मुंगेर और बेगूसराय में छठ महापर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।
•दूसरी मान्यता यह है कि प्रथम देवासुर संग्राम में देवताओं की पराजय के पश्चात देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य के देव सूर्य मंदिर में रनबे (छठी मैया) अपनी पुत्री की आराधना की थी।
छठ के चारों दिनों का महत्व:
नहाय खाय
•छठ का पहला दिन "नहाय खाय" के नाम से जाना जाता है। इस दिन सबसे पहले घर की सफाई कर उसे पवित्र किया जाता है। उसके बाद व्रती अपने नजदीक में स्थित गंगा नदी,गंगा की सहायक नदी या तालाब में जाकर स्नान करते है।
खरना लोहंड
* छठ का दूसरा दिन " खरना लोहंडा" के नाम से प्रचलित है। इस दिन व्रती सूर्यास्त तक निर्जला व्रत रखते है ।शाम को चावल गुड़ और गन्ने के रस का प्रयोग कर खीर बनाया जाता है। खाना बनाने में नमक और चीनी का प्रयोग नहीं किया जाता है। इन्हीं दो चीजों को पुन: सूर्यदेव को नैवैद्य देकर उसी घर में ‘एकान्त' करते हैं अर्थात् एकान्त रहकर उसे ग्रहण करते हैं।
संध्या अर्घ्य
•छठ का तीसरा दिन "संध्या अर्घ्य" के नाम से जाना जाता है। इस दिन पुरे दिन सभी लोग मिलकर पूजा की तैयारिया करते है। छठ पूजा के लिए विशेष प्रसाद जैसे ठेकुआ,चावल के लड्डू जिसे कचवनिया भी कहा जाता है, बनाया जाता है । छठ पूजा के लिए एक बांस की बनी हुयी टोकरी जिसे दउरा कहते है में पूजा के प्रसाद,फल डालकर देवकारी में रख दिया जाता है। वहां पूजा अर्चना करने के बाद शाम को एक सूप में नारियल,पांच प्रकार के फल,और पूजा का अन्य सामान लेकर दउरा में रख कर घर का पुरुष अपने हाथो से उठाकर छठ घाट पर ले जाता है। यह अपवित्र न हो इसलिए इसे सर के ऊपर की तरफ रखते है। छठ घाट की तरफ जाते हुए रास्ते में प्रायः महिलाये छठ का गीत गाते हुए जाती है।
ऊषा अर्ह्ग
* छठ का अंतिम दिन "ऊषा अर्ह्ग" के नाम से प्रसिद्ध है ।सुबह उदियमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। सूर्योदय से पहले ही व्रती लोग घाट पर उगते सूर्यदेव की पूजा हेतु पहुंच जाते हैं और शाम की ही तरह उनके पुरजन-परिजन उपस्थित रहते हैं। संध्या अर्घ्य में अर्पित पकवानों को नए पकवानों से प्रतिस्थापित कर दिया जाता है परन्तु कन्द, मूल, फलादि वही रहते हैं।
छठ का त्यौहार सर्व मनोकामना पूर्ति के लिए किया जाता है।
(Bjmc 1year)
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