किसान आंदोलन की अब तक की एक छबि

आज से कुछ वर्ष पूर्व या यूँ कहे तो कुछ दशक पूर्व एक बहुत ही हिट गाना आया था | आपने भी शायद उसे ज़रूर सुना होगा लेकिन उसकी चंद पंक्तियों को मैं किसानो को लेकर सरकार के लिए बताना चाहता हूँ ,दोहराना चाहता हूँ | वो पंक्तियाँ थीं -:

तुम क्या जानो कितने दिन , रात गुज़ारी मैंने तारे गिन-गिन |
याद तुम्हारी आती है , मुझको बेचैन कर जाती है ||
चैन मेरा लेके तुमने , मुझको बेचैन किया |
तेरी मुहब्बत ने , दिल में मक़ाम कर दिया ||


ये उपर्युक्त पंक्तियाँ कहीं ना कहीं किसानो की दशा एवं दिशा को पूर्णतः बयां कर देती है | जिस तरह से किसान इन सर्द रातों में खुले आसमान के निचे इस प्रदर्शन को क़ामयाब करने लिए पूरी निष्ठा से डटे हैं, जोकि बेहद काबिल-ए-तारीफ़ है | लेकिन हमें हर पहलु को बेहद बारीकी से समझना होगा | किसानो के आंदोलन के क़रीब एक हफ़्ते के बाद केंद्र सरकार की नींद खुलीं | नींद खुली तो सरकार ने अपने दो केंद्रीय मंत्रियों को केंद्र प्रतिनिधि के रूप में अपने तरफ से किसान संगठनो के विभिन्न नेताओं से बात करने को भेजा और करीब सात दौर की बातचीत बेनतीजा रहने के बाद स्वयं हमारे गृहमंत्री श्री अमित भाई शाह जी किसानों से बातचीत करने के लिए आगे आए | लेकिन स्वयं गृहमंत्री भी किसानो को मनाने में नाक़ामयाब रहें और एकबार फिर से आठवें दौर की बातचीत भी बेनतीजा रही |

अब बारी आती है भारत बंद की | 8 दिसंबर के दिन हमें तीन अलग़-अलग़ नज़ारे देखने को मिले | पहला ये कि योगी सरकार के सख्त मनाही के बावज़ूद कुछ प्रदर्शनकारी या यूँ कहें तो समाजवादी उपद्रवी किसानो को भड़का रहे थे | हालाँकि यूपी पुलिस के हंटर पड़ने के बाद कुछ भाग खड़े हुए और कुछ को पुलिस ने उनके नेता सहित गिरफ़्तार कर लिया | दूसरा ये की इस घटना के तुरंत बाद किशन नेता अपने लोगो को सचेत करते दिखें की उन्हें भी ऐसे असामाजिक तत्वों से बचना चाहिए जो सिर्फ अपनी राजनीती चमकाने आते है | तीसरा और बड़ा ही दिलचस्प नज़ारा ये था की दिल्ली पुलिस ने किसान आंदोलन को समर्थन देने जा रहे दिल्ली से मॉडल टाउन को विधायक को सर और पाँव के बल उठा कर ले गयी तो वही इनके पार्टी सर्वेसर्वा एवं दिल्ली मुख्यमंत्री श्री केजरीवाल जी को भी दिल्ली पुलिस ने उन्हें लगभग उनके ही घर में नज़रबंद सा कर दिया |

अब बात 9 दिसंबर की यानि की सरकार और किसानो के बीच बातचीत वाले दिन की | हालाँकि इस दिन की बातचीत किन्ही कारणों से सरकार से सरकार के द्वारा निरस्त कर दी गई | लेकिन इस दिन का सरकार ने भरपूर इस्तेमाल किया और किसानो के सामने कृषि कानून में संशोधन से संबंधित एक प्रस्ताव किसानो के सामने रखा | जिसमें सरकार का साफ़ कहना था की -:

1 . सरकार किसानो को उनके मांग स्वरुप उनके फषलों के ऊपर लिखित MSP देने को तैयार है |
2 . सरकार द्वारा APMC के तहत आने वाली मंडियों को सरकार निरस्त नहीं करेगी और वे मंडिया वैसे ही यथावत चलेंगी जैसे की वे चलती आ रही थीं |
3 . कृषि बिल संबंधित राज्य सरकार के किसी भी फैसले के ऊपर केंद्र सरकार हस्ताछेप नहीं करेंगी |
 





हालाँकि इस प्रस्ताव के आने के बाद किसान संगठनों ने त्वरित बैठक शुरू की और इस बैठक के बाद किसान संगठनों के नेताओं ने सरकार के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया और एक बार फ़िर 14 दिसंबर को संपूर्ण भारत बंद का आह्वाहन किया | जिसके बाद स्वयं गृहमंत्री ने सरकार का बचाव करते हुए कहा की - सरकार चाहे किसी की भी हो कोई भी सरकार किसी भी बिल को रद्द नहीं कर सकती है | लेकिन सरकार चाहे तो लोकसभापति से संसद की विशेष सत्र को बुलाने का निवेदन करके ,संसद के दोनों सदनों से पारित करके इसमें संसोधन कर सकती है और करती भी है |

हालाँकि दूसरी ओर यदि हम देखे तो सरकार की स्थिति भी कहीं ना कहीं किसानो लेके साजन फिल्म के एक गाने से एकदम मेल खाती दिखती है | वो पंक्तियाँ थीं -:

कसम चाहे लेलो , खुदा की कसम |
बहुत प्यार करते है , तुमको सनम ||

लेकिन हर सिक्के के दो पहलु होते है और यहाँ दोनों पहलुओं को समझना बेहद ज़रूरी है | सरकार के सामने दोनों पहलुओं पर अलग - अलग चुनौतियाँ समाहित हैं | एक तरफ सरकार जहाँ इस आंदोलन को जल्द से जल्द समाप्त करना चाहती है क्योकि कहीं ना कहीं बंगाल के विधानसभा और बिहार एवं दिल्ली में होने वाले चुनाव को यह आंदोलन भाजपा के दशा एवं दिशा को बुरी तरह से प्रभावित कर देगा क्योकि यदि दिल्ली को छोड़ भी दें तो बिहार और बंगाल कृषि प्रधान राज्य है और जब वे सरकार को किसानो के प्रति निरुत्तर देखेंगे तो इससे सरकार की एक बहुत बड़ी वोट बैंक प्रभावित होगी | वही इसको समाप्त करना इस्सलिये भी ज़रूरी हो जाता है क्योंकि इस आंदोलन के तहत विपक्ष को राजनितिक रोटियां सेकने का भरपूर मौका मिलेगा |

दूसरा पहलु ये की सरकार के सामने ये भी चुनौती रहेगी की इस आंदोलन के पीछे हो रही फंडिंग को किसी भी तरह से रोका जाए | हालाँकि NIA के छापे के बाद इसमें कई ख़ालिस्तानी आतंकियों के नाम सामने आये हैं जोकि विदेशों में से बैठे बैठे इसकी फंडिंग में लगे पड़े हैं | चुकी कृषि आंदोलन में ख़ालिस्तानी आतंकियों के नाम आने के बाद सबसे बड़ा सवाल तो यह है की  -:

1 . कहीं CAA ,NRC  का विरोध कर रहे शाहीन बाग़ जैसे प्रदर्शनों जैसा कृषि आंदोलन भी तो नहीं....??
2 . दिल्ली के शाहीन बाग़ जैसा कृषि आंदोलन भी कहीं संयोग कम और प्रयोग ज्यादा तो नहीं .......??
3 . कहीं किसानो को सरकार के खिलाफ भड़काया तो नहीं जा रहा.......??

ऐसे कई सारे सवाल सरकार के मन में भी ज़रूर होंगे जिसकी जाँच भी सरकार अपने तरीके से ज़रूर कर रही होगी |

दूसरी ओर जब किसान  सहयोग चाहते है तो सहयोग पाने की एक बड़ी ही पुरानी और कारगार निति है जो की आने वाले युगों ही कारगर रहेगी | उस निति को मैं चंद पंक्तियों के माध्यम से बता के अपने बात को खत्म करना चाहूँगा | वो पंक्तियाँ है -:

कुछ कदम आप हमारी और बढ़ाइये ,
कुछ आपकी ओर हम बढ़ाएंगे ||
कुछ साथ आप हमारी ओर आइए ,
कुछ साथ हम आपकी ओर आएंगे ||  



रौशन कुमार सिंह
BJMC (1st year )

Comments

Post a Comment

Media College in Delhi Popular Posts

Embrace your body - Love the way you are!

Science is a beautiful gift to humanity; we should not distort it

गणेश चतुर्थी: भगवान गणेश के प्रति भक्ति और आदर का प्रतीक