वन नेशन वन इलेक्शन बिल सदन में स्वीकार
वन नेशन वन इलेक्शन बिल सदन में स्वीकार कर लिया गया है सदन में हुई दो बार वोटिंग में इस बिल के पक्ष में 269 और विरोध में 198 वोट पड़े।
इसके बाद केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने इसे सदन में रखा। अमित शाह ने सदन में कहा कि बिल जब कैबिनेट में आया था, तब प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि इसे संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को भेजना चाहिए। कानून मंत्री ऐसा प्रस्ताव कर सकते हैं।
वन नेशन वन इलेक्शन से फायदे, वन नेशन वन इलेक्शन के नुकसान !
1- वन नेशन वन इलेक्शन से घटेगा चुनाव का खर्च
2- प्रशासन और सुरक्षा बलों पर बोझ कम होगा।
३- चुनाव पर ध्यान देने की जगह सरकारें विकास के कामों पर ध्यान देगी।
4- फायदा यह होगा कि देश को बार-बार चुनाव के चक्कर में नहीं फंसना पड़ेगा।
5- विकास कार्यों की रफ्तार नहीं रुकेगी। अभी आचार संहिता के चलते विकास कार्य रोक दिए जाते हैं।
6- पुलिस से लेकर अन्य सरकारी अफसर चुनावी तैयारियों में व्यस्त हो जाते हैं। आम लोगों को तमाम मुश्किलों और चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
7- अभी राज्यों में चुनाव होते हैं तो केंद्र की सत्तारूढ़ पार्टी को विपक्षी पार्टी की सरकार का खुला विरोध करना होता है।और वहां के विकास कार्यों में आरोप लगाकर हमला करते है।
8- एक देश, एक चुनाव से केंद्र और राज्य के बीच तनाव की स्थिति नहीं बनेगी।
9- संसाधन से लेकर धन,टाइम तक की बचत होगी। बड़ी बात यह है कि पैसों की बचत होगी।
10- लोकसभा चुनाव का खर्च केंद्र और विधानसभा चुनाव का खर्च राज्य सरकार उठाती है। अगर किसी राज्य में लोकसभा के साथ-साथ विधानसभा चुनाव भी हों तो फिर केंद्र और राज्य मिलकर खर्चा उठाते हैं।
वोटिंग पैटर्न का मुद्दा बदलेगा।
स्थानीय पार्टियों को नुकसान उठाना पड़ सकता है!
छोटी पार्टियों के अस्तित्व पर खतरा हो सकता!
राष्ट्रीय पार्टियों को फायदा मिल सकता है !
अधिक संसाधनों की जरूरत पड़ेगी।
कैसे लागू होगा कितना समय लगेगा
EVM और अन्य संसाधनों की व्यवस्था में कम से कम 3 साल लग सकते।
कानून लागू होने में कम से कम 10 साल का समय लग सकता है।
संविधान और कानून में बदलाव करना होगा। संविधान में संशोधन करना होगा। संविधान के अनुच्छेद 83,85,172,174 और 356
में बदलाव करना पड़ेगा।
आजादी के बाद एक साथ हो चुके हैं चुनाव
भारत के लिए यह कोई नया कॉन्सेप्ट नहीं है देश में आजादी के बाद से 1967 तक लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए गए थे। 1951, 1957, 1962 और 1967 में दोनों चुनाव एक साथ हुए थे,
लेकिन राज्यों के पुनर्गठन और अन्य कारणों से चुनाव अलग-अलग समय पर होने लगे
Shivam Singh
BJMC 1
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