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अयोध्या में मन रहा है प्राण प्रतिष्ठा का उत्सव राम मंदिर में भगवान रामलला की प्राण प्रतिष्ठा समारोह के अवसर पर रामनगरी में 22 जनवरी से पहले तीन प्रतिमाएं स्थापित किए जाने की तैयारी चल रही है। प्राण प्रतिष्ठा तक विभिन्न पूजन की तिथियां- अयोध्या में 18 जनवरी को लगभग एक बजे से गणपति पूजन किया जाएगा। इसके साथ ही जन्मभूमि मंदिर के गर्भगृह में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का प्रधान संकल्प लिया जाएगा। इसके साथ मात्रिका पूजन होगा। फिर पंचांग पूजन के बाद मंडप प्रवेश का आयोजन होगा। अयोध्या राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के अनुष्ठान के तहत 17 को महिलाओं ने कलश यात्रा भी निकाली । रामलला की अनुकृति का राम मंदिर परिसर में प्रवेश कराया गया। यह अनुकृति दस किलो की है। असली रामलला की मूर्ति का वजन ज्यादा होने के कारण इस छोटी मूर्ति का नगर भ्रमण और मंदिर प्रवेश कराया गया है। देर शाम रामलला की असली मूर्ति भी राममंदिर पहुंच गई। आज यानी 18 जनवरी रामलला गर्भगृह में पहुंच जाएंगे। इससे पहले यज्ञ मंडप के 16 स्तंभों और चारों द्वारों का पूजन भी हुआ। बताया गया है कि 16 स्तंभ 16 देवताओं के प्रतीक हैं।
आज हम बात कर रहे है उन नकारात्मक ऊर्जाओं कि जिनका अस्तित्व दुनिया में मौजूद है । भूत जिसका अर्थ है बीता हुए कल ,जो चीज़े बीत जाती है वो सिर्फ यादे बनकर रह रहती है ।कभी - कभी बीती हुई चीज़े हमारे सामने इस प्रकार आती है कि वह हमें अंदर से और बाहर से भी डरा कर चली जाती है। कहते हैं कई बार हम आत्माओं को देख नहीं सकते पर हम उन्हें महसूस कर सकते हैं। दुनिया रहस्य से भरी है किसी एक का रहस्य पता लगाते लगाते हम किसी अन्य रहस्य पर पहुंच जाते हैं। जैसे समय रुक नहीं सकता वैसे ही दुनिया में कई अनेक ऐसी चमत्कारी चीजें हैं जिनकी गिनती नहीं है । जहां हम भगवान पर विश्वास करते है वहीं कहीं न कहीं हम शैतान जैसी बातों से रूबरू होते है । विज्ञान इतनी तरक्की कर चुका है लेकिन वह आज तक इन जादुई चीजों का पता नहीं लगा पाया है जहां विज्ञान कहता है उर्जा कभी खत्म नहीं हो सकती वह किसी ना किसी रूप में स्थिर हो जाती है। हर सिक्के के 2 पहलू होते हैं अगर दुनिया में सकारात्मक ऊर्जा है तो नकारात्मक जरूर होगी। डर एक ऐसा शब्द है या फिर एक ऐसा एहसास है जो हमें काटने पर मजबूर कर देता है कभी-कभी हमें हैरत में डाल देता है
मंगलवार को देवशयनी एकादशी थी। आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक यानि 4 महीने श्री हरी विष्णु पाताल लोक में विश्राम करते है। अब सवाल उठता है की जब श्री विष्णु विश्राम करते है, तब पृथ्वी का भार कौन संभालता है। आज इस ब्लॉग से हम सभी तथ्य जानेंगे। क्या है देवशयनी एकादशी? आषाढ़ शुक्ल एकादशी को देवशयनी एकदशी कहते हैं। पद्मा पुराण के अनुसार आषाढ़ शुक्ल एकादशी यानि देवशयनी एकादशी के दिन श्री हरी विष्णु विश्राम करने जाते है और देवउठनी एकादशी तक वही विश्राम करते है। विश्राम पर जाने के समय को देवशयनी और विश्राम पूर्ण होने पर जब वो जागते है उस दिन को देवउठनी एकादशी नामसे जाना जाता है। आखिर क्यों जाते हैं श्री हरि विष्णु पाताल लोक ? भागवत पुराण के 10वे खंड के 56वे अध्याय के उल्लेख के अनुसार एक बार श्री हरी विष्णु शंखचूड़ नामक असुर के साथ युद्ध लम्बे अंतराल तक चलता रहा। युद्ध में विजयी होने के बाद भगवान बहुत थक गए थे। देवताओ ने आषाढ़ शुक्ल एकादशी के दिन प्रभु की पूजा करने के बाद उनसे विनती की कि अब वह कुछ समय विश्राम करे। देवताओं की विनती पर प्रभु चार पहर के लिए विश्राम करने चले गए ज
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