1 रुपये में जमीन!

 बीजेपी ने दिया अडानी को 1 रुपये में जमीन! क्या है सच्चाई?

बहुत दिनों से सोशल मीडिया और खबरों में ये चर्चा हो रही है कि बिहार के भागलपुर में अडानी को 1050 एकड़ जमीन मात्र 1 रुपये सालाना में दे दी गई है। इस बात ने राजनीतिक माहौल को गर्मा दिया है। विपक्ष की तरफ से आरोप लगे हैं कि सरकार अडानी को मुफ्त में जमीन देकर देश और किसानों के साथ धोखा कर रही है।



लेकिन अगर हम पूरे मामले को सही ढंग से समझें तो तस्वीर पूरी तरह अलग है।


पावर प्रोजेक्ट की शुरुआत

असल में यह प्रोजेक्ट साल 2010 से ही शुरू हो चुका था। बिजली उत्पादन के लिए भूमि अधिग्रहण का काम 2012 तक काफी हद तक पूरा हो चुका था। इस प्रोजेक्ट को पहले सरकारी कंपनियों (PSUs) को ऑफर किया गया था, लेकिन उन्होंने इस पर आगे काम नहीं किया। बाद में इसे टेंडर के ज़रिए चार बड़ी कंपनियों को दिया गया, जिनमें से सबसे कम कीमत पर बिजली सप्लाई करने वाली कंपनी को प्रोजेक्ट मिला।



बोली प्रक्रिया और अडानी की जीत

चार कंपनियों ने इस प्रोजेक्ट के लिए बोली लगाई थी:


JSW Energy: 6.20 रुपये प्रति यूनिट


Lalitpur Power: 6.16 रुपये प्रति यूनिट


Torrent Power: 6.14 रुपये प्रति यूनिट


अडानी पावर: 6.075 रुपये प्रति यूनिट


सबसे कम कीमत पर बिजली देने का वादा अडानी पावर ने किया, इसलिए टेंडर उनके नाम हुआ। इसका मतलब है कि जमीन अडानी को इस परियोजना के लिए 1 रुपये सालाना की लीज पर दी गई है, जिससे निजी संपत्ति या महल बनाना संभव नहीं। ये जमीन भूमि मालिकाना अधिकार नहीं, बल्कि प्रोजेक्ट के लिए ली गई है।




निवेश और लाभ

अडानी ग्रुप इस प्रोजेक्ट में लगभग 26,000 करोड़ रुपये का निवेश करेगा और करीब 12,000 लोगों को रोज़गार मिलेगा। यह प्रोजेक्ट बिहार के बिजली संकट को दूर करने में मदद करेगा और उद्योगों को सस्ती बिजली मुहैया कराएगा, जिससे राज्य की अर्थव्यवस्था बेहतर होगी।




1 रुपये की लीज़ – क्या यह नया है?

बिहार ही नहीं, भारत के अन्य राज्यों में भी इस तरह की पावर प्रोजेक्ट्स के लिए जमीन कम रेट पर दी जाती है। उदाहरण के लिए:


आंध्र प्रदेश में कॉग्निजेंट को 1 रुपये की लीज़ पर जमीन दी गई, जिसमें कंपनी ने 1,583 करोड़ का निवेश और 8,000 नौकरियों का वादा किया।


तेलंगाना में हाल ही में अडानी के साथ 12,400 करोड़ रुपये के निवेश के लिए समझौता हुआ।


कर्नाटक और केरल में भी अडानी के बड़े निवेश और रोजगार कार्यक्रम चल रहे हैं।


राजनीतिक आलोचना और सच

विपक्ष ने आरोप लगाए हैं कि इस जमीन को “गिफ्ट” में दिया गया और किसानों को न्याय नहीं मिला। हालांकि सरकार और उद्योगपति इसे विकास और रोजगार के मौके के रूप में देख रहे हैं। बिहार सरकार के उद्योग मंत्री नीतीश मिश्रा ने इस प्रक्रिया की पारदर्शिता का दावा किया है और आरोपों को गलत बताया है।




निष्कर्ष

यह मामला सिर्फ जमीन का नहीं है, बल्कि निवेश, विकास और पारदर्शिता का है। बिहार को बड़े प्रोजेक्ट्स और उद्योगपतियों के निवेश से फायदा होगा, लेकिन यह भी जरूरी है कि किसानों के अधिकारों का सम्मान हो। देश की तरक्की तभी संभव है जब सभी पक्षों को साथ लेकर चलें।


RITU SINGH

BJMC 3

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