सरकार की कथनी और करनी में अंतर!

देश में कोरोना का कहर जारी हैं। टीकाकरण अभियान मे तेजी के बावजूद भी कोरोना के दूसरी लहर के आकड़े डराने लगे हैं। पिछले दो दिन से देश भर से कोरोना के 1 लाख से ज्यादा दैनिक मामले सामने आ रहे हैं। कोरोना के नये स्ट्रेन से भी लोग डरे हुए हैं। कोरोना के दूसरी लहर को रोकने के लिए सरकार नाईट कर्फ्यू लगा रही हैं, वही रायपुर में दस दिनों के लिए पूर्ण बंदी कर दिया गया हैं। दिल्ली, मुंबई, गुजरात, मध्य- प्रदेश, पंजाब जैसे राज्यों में  कोरोना को रोकने के लिए आंशिक लॉक डाउन और नाईट कर्फ्यू का सहारा लिया गया हैं। 





सरकार लोगों से मास्क पहनने और सामाजिक दूरी रखने की भी सलाह दे रही हैं। बहुत से शहरों मे धारा 144 भी लगा दिया गया हैं, यानी की वहा पर एक जगह पर 5 लोगों से अधिक लोग जमा नही होंगे। एक तरफ स्वास्थ्य मंत्रालय और सरकार दूरी बनाने को बोलती हैं तो वही दूसरी तरफ़ मंत्री और नेता चुनाव-प्रचार के दौरान इन नियमों का ध्यान नहीं रखते। मास्क लगाना, दो गज की दूरी रखना, भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों मे ना जाना प्रमुख रूप से कोरोना से बचाव की गाइडलाइन हैं। केन्द्र और राज्य सरकारों के विभिन्न मंत्रियों द्वारा विभिन्न राज्यों की चुनावी रैलियों में पूरी तरह से इन नियमों की अवहेलना की जा रही है। अपनी चुनावी सभाओं मे लाखों की भीड़ जमा करना वाले नेता कोरोना की गाइडलाइन पर ध्यान ही नहीं दे रहे। सरकार कहती कुछ हैं, करती कुछ हैं। एक तरफ पीएम मोदी कोरोना के बढ़ते रफ्तार को रोकने के लिए मुख्यमंत्री के साथ बैठक करते हैं तो वही दूसरी तरफ विशाल जनसभा को संबोधित भी करते हैं, जहा पर सोशल दूरी की धज्ज्जिया उडी रहती हैं। 







नाइट कर्फ्यू लगाने से कोई फायदा नहीं है। रात में तो लोग वैसे भी घर पर रहते हैं और मिलना-मिलाना तो दिन में होता है। पूरी तरीके से बंदी कर देना भी उपाय नही हैं। बढ़ते मामले को रोकने के लिए सरकार को प्रभावी फैसला लेना ही होगा। सरकार के कथनी और करनी मे अंतर नही होना चाहिए। 

सिर्फ अकेले सरकार को दोषी नहीं माना जा सकता है। कोरोना जैसी बीमारी की लड़ाई में हर व्यक्ति की भागीदारी जरूरी है। जनता के लापरवाह होनेे के कारण फिर से संक्रमण में वृद्धि हुई है। 





नीतीश कुमार पाठक
BJMC- 4

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