भारतीय संविधान की आत्मा।।

नमस्कार,जैसा कि आप सभी जानते हैं हमारे संविधान में प्रस्तावना यानी कि Preable जिसे भारतीय संविधान की आत्मा कहा जाता है।।जिसका भारतीय संविधान मानने वालों को अनुसरण करना होता है।।
प्रस्तावना को सबसे पहले अमेरिका के संविधान में जोड़ा गया था।।


भारतीय संविधान की प्रस्तावना

हम भारत के लोग भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न समाजवादी पंथ निरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिक को : सामाजिक, आर्थिक, और राजनैतिक नयाय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए, तथा उन सब मेँ व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुरक्षा सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा मेँ आज तारीख 26 नवंबर 1949 ई. (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी संवत २००६ विक्रमी) को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित, और आत्मार्पित करते हैं।

वैसे तो हमारी प्रस्तावना के एक-एक शब्द का अर्थ संक्षिप्त रूप से बताया गए पर आज हम बात करने वाले हैं 3 शब्दों की जिसे 42 वें संविधान संशोधन 1976 द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया था।। 

पर इससे पहले यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि आखिर किस अनुच्छेद द्वारा हमारे भारतीय संविधान में संशोधन किया जाता है अनुच्छेद 368 भाग 20 में संविधान संशोधन की प्रक्रिया का पूर्ण उल्लेख किया गया है।।  और अब तक भारतीय संविधान में 126 संविधान संशोधन हो चुके हैं।।
 संविधान संशोधन के लिए संसद के पूर्ण बहुमत की आवश्यकता है।।।


अब बात करते हैं 42 वें संविधान संशोधन 1976 की इस संशोधन द्वारा भारतीय प्रस्तावना में 3 शब्दों को जोड़ा गया 'समाजवादी'  'पंथ निरपेक्ष' और 'लोकतंत्रात्मक' ।।।।


समाजवादी:- समाजवाद एक आर्थिक सामाजिक दर्शन यानी कि एक विचारधारा है।। समाजवाद के अनुसार धन संपत्ति का वितरण पूरे समाज में होना चाहिए किसी निजी संपत्ति या पूंजीपति के अधिकार में नहीं होना चाहिए।।। राष्ट्र की जो भी आर्थिक गतिविधि है राष्ट्र में जितना भी रुपया है उस पर किसी एक व्यक्ति का अधिकार ना होकर सरकार के माध्यम से पूरे समाज का अधिकार है।। 
 समाजवाद शब्द नीति निर्देशक तत्व के माध्यम से हमारी प्रस्तावना में शामिल किया गया है।।।


पंथनिरपेक्ष:- इसका मतलब यह है कि भारत का कोई एक विशेष धर्म नहीं है भारतीय संविधान के अनुसार सभी धर्म समान है और सभी धर्मों के लोगों को भारत में रहने की इजाजत ही नहीं बल्कि अपने धर्म विशेष का प्रचार प्रसार करने की पूर्णतःछूट है ।।भारतीय कोई भी धर्म अपना सकते हैं किसी भी धर्म के अनुयाई बन सकते हैं और उस धर्म का प्रचार प्रसार करने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र है।।। पंथनिरपेक्ष यानी कि धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों का पुणे उल्लेख मौलिक अधिकार के अनुच्छेद 25-28 भाग-3 में किया गया है।।


लोकतंत्रात्मक:- लोकतंत्र जिसका शाब्दिक अर्थ है "लोगों का शासन" इसे प्रजातंत्र भी कहा जाता है।। लोकतंत्र की परिभाषा ही यही है कि जनता द्वारा,जनता के लिए,जनता का शासन। यानी कि जनता स्वयं अपने लिए स्वयं एक शासन व्यवस्था को चुनते हैं बिल्कुल साधारण शब्दों में कहा जाए तो हम खुद ही और हम जहां रहते हैं यानी कि हमारे देश में शासन व्यवस्था शांतिपूर्ण तरीके से चल सके इसके लिए हमें प्रतिनिधि चुनते हैं जो हमारी रक्षा के लिए शासन करते हैं और समाज की भलाई के लिए शासन करती है अर्थात सरकार जिसे हम अपनी सुरक्षा के लिए स्वयं चुनते हैं।।।


NISHU SINGH
Bjmc ii

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