बाल श्रमिक दिवस क्या है,क्यों मनाया जाता है?
किसी भी देश की तरक्की उस देश की आने वाली पीढ़ी पर निर्भर होती है नई पीढ़ी पर देश के भविष्य का भार होता है जिसके लिए मौजूदा समय में शिक्षा, स्वास्थ्य और भोजन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है.विश्व स्तर पर फैली कोविड-19 की समस्या ने दुनिया भर के सभी देशों की जड़ें हिला दी हैं जिसका सीधा प्रभाव बाल श्रमिक वर्ग पर पड़ा है विश्व स्तर पर बाल श्रमिक एक ऐसी समस्या है जिसे दूर करने के लिए दुनियाभर के देश कई बड़े कदम उठा चुके हैं लेकिन आज 17 साल बाद भी ज़मीन स्तर से बाल मजदूरी के पैर उखाड़ने में पूरी तरह कामयाब नहीं हो सकें हैं.अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हर साल 12 जून को वर्ल्ड अगेंस्ट चाइल्ड लेबर डे मनाया जाता है इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन ने इसकी शुरुआत 2002 में की थी जिसका सीधा मकसद था दुनिया से बाल मजदूरी को खत्म करना और हर साल इसी आशा और एक नई ऊर्जा के साथ इस दिन को मनाया जाता है।
यूनिसेफ की रिपोर्ट एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया भर के वंचित वर्ग के बच्चें शिक्षा, भोजन और स्वास्थ्य सुविधाओं से दूर हो रहें हैं।इसके प्रभाव की महत्ता को समझा जा सकता है जब दो महीने पहले मई में ही संयुक्त राष्ट्र के महासचिव द्वारा दुनियाभर की सरकारों और दानदाताओं से अपील की गई थी कि वे बच्चों पर कोविड 19 के हो रहे प्रभाव से लड़ने में मदद करें।विशेषज्ञों के मुताबिक, यह वायरस बच्चों को कम नुकसान पहुंचा रहा है, लेकिन यह बाल श्रम बढ़ने का बड़ा कारण बन सकता है। बहुत कम उम्र में मजदूरी से नाता जोड़ने वाले बच्चे आर्थिक मजबूरी के कारण इसका शिकार होते हैं। इन बच्चों के लिए दुनिया भर में कई एनजीओ भी काम करते हैं जो उनके अधिकारों से उन्हें अवगत कराते हैं उनके लिए अपने स्तर पर सुविधाएं भी प्रदान करते हैं.उसके बाद भी बच्चों का मजदूरी की और धकेलना एक बहुत बड़ी समस्या है।
बाल्यकाल में बच्चों का काम करना प्राचीन काल से चलता रहा है जब लोगों को इस बात की समझ भी नहीं थी क्या एक तरह का अपराध है।1985 तक तो मजदूरी के लिए कोई विशेष कानून भी नहीं काम करता था.1979 में सरकार द्वारा व्दारा बाल मजदूरी को खत्म करने के लिए गुरूपाद स्वामी समिति बनाई गई थी जिसके तहत बाल श्रम से जुड़ी सभी समस्याओं का अध्ययन किया गया जिसमें व्दारा बाल श्रम का कारण गरीबी बताया गया और सुझाव दिया गया कि खतरनाक क्षेत्रों में बाल मजदूरी पर प्रतिबंध लगाया जाए एवं उन क्षेत्रों के कार्य के स्तर में सुधार किया जाएं। इस समिति के सुझाव के बाद कई प्रावधान सामने आए-
1986 में बाल मजदूरी प्रतिबंध विनियमन अधिनियम अस्तित्व में आया, जिसमें विशेष खतरनाक व्यवसाय व प्रक्रिया के बच्चों के रोजगार एवं अन्य वर्ग के लिए कार्य की शर्तों का निर्धारण किया गया।
इसके बाद सन 1987 में बाल मजदूरी के लिए विशेष नीति बनाई गई, जिसमें जोखिम भरे व्यवसाय एवं प्रक्रियाओं में लिप्त बच्चों के पुर्नवास पर ध्यान देने की आवश्यकता पर जोर दिया गया।
बच्चों की समस्याओं पर विचार करने के लिए अक्टूबर 1990 में न्यूयार्क में एक महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय प्रयास किया गया ।
1990 में न्यूयार्क में इस विषय पर एक विश्व शिखर सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें 151 राष्ट्रों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया तथा गरीबी, कुपोषण व भुखमरी के शिकार दुनिया भर के करोड़ों बच्चों की समस्याओं पर विचार-विमर्श किया गया ।
वर्तमान समय की बात की जाए तो अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक पूरी दुनिया में लगभग 15.2 करोड़ बच्चे बाल श्रम के लिए मजबूर हैं।
भारत में 2011 की जनसंख्या के अनुसार 156 मिलियन बच्चे बाल मजदूरी का शिकार है।
मध्यप्रदेश से लेकर उत्तर प्रदेश, राजस्थान, जम्मू-कश्मीर, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, केरल, आंध्रप्रदेश, आसाम, त्रिपुरा और संपूर्ण भारत में ये बाल श्रमिक - कालीन, दियासलाई, रत्न पॉलिश व जवाहरात, पीतल व कांच, बीड़ी उघोग, हस्तशिल्प ,सूती होजरी, नारियल रेशा, सिल्क, हथकरघा, कढ़ाई, बुनाई, रेशम, लकड़ी की नक्काशी, फिश फीजिंग, पत्थर की खुदाई, स्लेट पेंसिल, चाय के बागान और बाल वैश्यावृत्ति के कार्य करते देखे जा सकते हैं।
Shivani pal
Mjmc ii
Bahut hi jyada mast lekh
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