जिनके हौसलों में जान होती है उनके ही सपनों की उड़ान होती हैं।

जिनके हौसलों में जान होती है उनके ही सपनों की उड़ान होती हैं।

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती.....
असफलता एक चुनौती है यह स्वीकार करो,क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो.... श्री हरिवंश राय बच्चन की यह पंक्तियां टूटते हुए में हिम्मत भर देती है।  हिंदी सिनेमा में अपने काम से पहचाने जाने वाले अभिनेता इरफान खान आज भले ही इस दुनिया से अलविदा कह गए हो लेकिन उनके जीवन के संघर्ष की कहानी हमेशा प्रेरणा बनी रहेगी। इरफान खान अपने शर्मीले स्वभाव के कारण लोगों से दूर दूर रहा करते थे आज इस दुनिया से बहुत दूर चले गए हैं जहां से कोई वापस नहीं आता।

जयपुर में जन्मा एक लड़का जिसके बचपन से उसके मन में एक कसक थी। जयपुर में उसका मन ही नहीं लगता था। सपने पंख भर रहे थे बस जयपुर से किसी तरह मुंबई की सड़क का रास्ता पकड़ना था। किसी तरह राजस्थान यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन कंप्लीट किया इसके बाद राजस्थान यूनिवर्सिटी से ही पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद अब तो मानो रुकना ही नहीं हैं। यह सफर है इमरान खान का! बॉलीवुड के वह जादुई अभिनेता जिनकी एक्टिंग का जादू हमेशा याद किया जाएगा।




कॉलेज के दिनों में ही एक्टिंग की तरफ झुकाव होने लगा और मन में ठान लिया कि अब तो एक्टिंग ही करनी है लेकिन मुंबई का रास्ता इतना आसान नहीं था।
मां चाहती थी कि बेटा पढ़ लिख कर लेक्चरर बने और जयपुर से बाहर चला जाए लेकिन इरफान के सपने अपनी मंजिल ढूंढ चुके थे।दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (एनएसडी) में एडमिशन ले लिया। एक्टिंग के लिए इरफान में इतना जुनून था कि वह किसी भी तरीके से बस एक मौका चाहते थे।इसके लिए उन्होंने अपनी मां को भी झूठ बोला,घर पर मां को बताया कि कॉलेज के बाद ही पढ़ाई करने के लिए बाहर जा रहा हूं और फिर वापस आकर लेक्चरर बन जाऊंगा उन दिनों थिएटर को इतना महत्व नहीं दिया जाता था।लोग उसे टाइमपास का जरिया मानते थे। इरफान के माता-पिता भी थिएटर के बारे में कुछ ऐसे ही सोच रखते थे।

एनएसडी में ऐडमिशन के दौरान जब उनसे 10 नाटक के अनुभव के बारे में पूछा गया तो उन्होंने तब भी झूठ का सहारा लिया इरफान यह ठान चुके थे इरफान को लगता था कि जयपुर में उनके लिए सब कुछ खत्म हो चुका है अब चाहे जो हो उन्हें एनएसडी में एडमिशन लेना ही था नहीं तो वह पूरी दुनिया में आग लगा देंगे। उड़ने की चाहत और इरफान की मेहनत और जुनून ने उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाया। पिताजी का बिजनेस काफी अच्छा चलता था लेकिन ड्रामा स्कूल की फीस उन्होंने स्कॉलरशिप के जरिए भरी थी। बचपन में उन्हें ज्यादा पॉकेट मनी नहीं मिलती थी।जयपुर में दो बच्चों को ट्यूशन पढ़ाया करते थे। लगभग ₹15 महीना मिलता था जिन्हें इकट्ठा करके उन्होंने एक साइकिल खरीदी थी।

इरफान बहुत कम बोलना पसंद करते थे स्वभाव से बेहद ही शर्मीले थे।लोगों से मिलना जुलना उनके लिए बहुत मुश्किल काम होता था। ज्यादातर समय किताबों और अपनी स्क्रिप्ट के साथ ही गुजारते थे। इरफान ड्रामा स्कूल में अकेले ऐसे छात्र थे जो एक साथ कई सारे स्क्रिप्ट लेकर घूमते थे और हमेशा उन्हें पढ़ते रहते थे वह कहीं बाहर भी जाते थे तब भी एक ऐसा कोना ढूंढ लेते थे जहां उन्हें बैठकर पढ़ने की जगह मिल जाए। कम समय में बहुत अधिक जानने की चाह रखते थे।

इंट्रोवर्ड होने के बावजूद इरफान धार्मिक मुद्दों पर बेबाकी से अपनी बात रखते थे। मोहर्रम में होने वाली कुर्बानी पर उन्होंने साफ साफ लफ्जो में कह दिया था कि बेजुबान जानवर को बाजार से खरीद कर ला कर आप मार देते हैं उससे कौन सा अल्लहा खुश होगा, बेहतर होगा कि आप हिंदुस्तान में जो परेशानियां है उन पर बात करे। इरफान खान बचपन में भगवान के साथ एक रिश्ता में विश्वास रखते थे और वह खुशी में रोने लगते थे जब इबादत के लिए जाया करते थे।

ड्रामा स्कूल में मीरा नायर कास्टिंग के लिए कलाकारों को चुन रही थी उसमें इरफान खान को भी रोल दिया गया था और वह बहुत खुश थे कि अब उन्हें स्क्रीन पर आने का मौका मिलेगा इरफान रोल में इतना ज्यादा इंवॉल्व हो गए थे कि जब मीरा ने उन्हें उम्र की वजह से उस रोल में फिट ना होने के कारण रिजेक्ट किया तब वह बहुत रोए।

इरफान थिएटर में अपनी एक्टिंग के लिए जाने जाते थे पर हमेशा उन्हें अपने लुक्स को लेकर और खुलकर बातचीत ना कर पाने के कारण रिजेक्ट होना पड़ता था। थिएटर के दिनों में इरफान की पत्नी शुतापा जो उनके बैच में ही थी और एक दो दोस्त ही उनके साथ रहा करते थे। इरफान खान के सफर में एक टाइम ऐसा भी आया जब उन्हें निराशा ने घेर लिया और और उन्होंने सब कुछ छोड़-छाड़ कर वापस लौटने का फैसला कर लिया।

तब तक टीवी का काफी प्रसारण शुरू हो गया था चंद्रकांता,बनेगी अपनी आवाज जैसे शो में काम करना शुरू किया शो काफी पॉपुलर भी हुए। इरफान को उसमें काम करने में मजा नहीं आता था।वह हमेशा सिनेमा में ही काम करना चाहते थे। डायरेक्टर गोविंद निहलानी की "दृष्टि" मूवी से इरफान खान को एक टर्निंग प्वाइंट मिला। जिसमें डिंपल कपाड़िया उनके विपरीत थी। तब भी हिंदी सिनेमा में उनकी छवि धूमिल ही थी।
इरफान खान के बेहद अच्छे दोस्त और डायरेक्टर तिग्मांशु धूलिया उनके अंदर छुपे अभिनय को जानते थे। इरफान खान के करियर की एक नई शुरुआत आशिक कपाड़िया की "वॉरियर र्और उनके दोस्त तिग्मांशु धूलिया की "हासिल" मूवी से हुई। इन दोनों मूवी ने इरफान खान को हिंदी सिनेमा में एक पहचान दी इसके बाद जो सफर शुरू हुआ वो "पान सिंह तोमर" के साथ राष्ट्रीय पुरस्कार तक पहुंचा और अंग्रेजी मीडियम पर आकर थम गया।

Shivani Pal
Mjmc-ii

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