कोरोना के चलते भारत के आर्थिक हालत पर एक नज़र !



आज वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का वो लम्बा चौड़ा भाषण याद आ गया जो उन्होने संसद के पटल पर साल 2020-2021 के बजट को पेश करते वक्त पड़ा था, जिसमें  उन्होने ने वित्त वर्ष 2020 - 2021 की अनुमानित औसतन जीडीपी को 2.5 % से लेकर 5% तक तय करने का लक्ष्य रखा था। एक उम्मीद थी एक आस थी की शायद, वर्तमान को हाशिए पर रख कर भविष्य की नींव को मजबूत किया जा सके। साल अपनी रफ़्तार से बीत  रहा था चीन से कोरोना वायरस की खबरें भी आ रही थी लेकिन देश उसी वक्त एक दूसरे वायरस से जूझ रहा था और वो वायरस था देश में हर तरफ नागरिकता संशोधन बिल को लेकर हो रहा विरोध और उस विरोध के धुआँ को चिंगारी देती हिंसा की आग। हिंसा की आग में दिल्ली कुछ इस कदर झुलसी की आज भी उसके निसान सबूतों के तौर पर  दिल्ली की सड़को पर गौर करने पर नज़र आ जाते है पर आज हालत इस मोड़ पर आकर खड़े हो गए है की सड़कों पर निकलने के लिए भी सरकार ने पाबन्दी लगा दी है। होली से पहले शायद ये भनक किसी को नहीं थी की कोरोना वायरस भारत में इस कदर अपना संक्रमण फैलाएगा। होली की छुट्टियों के बाद हालत कुछ ऐसे बने की दफ्तरों में कर्मचारियों के आने पर रोक लगा दी गई



और वर्क फ्रॉम होम के निर्देश दिए गए की कोरोना के संक्रमण को फैलने से रोका जाये और देश को इस वैश्विक  महामारी से बचाया जा सके, पर हालत ये हो गए की चीन में पनपी इस वैश्विक महामारी ने देश को लॉक डाउन होने पर मजबूर कर दिया और इसी के साथ हमारे देश की सुस्त पड़ी अर्थ व्यवस्था का भी पतन शुरू होने की आशंका टीवी चैनलों की डिबेट में पनपने लगी, गरीब को अपने पेट की चिंता सताने लगनी और जिसने शायद उनको पैदल ही गांव की तरफ चलने के लिए मजबूर कर दिया। सरकार ने राहत पैकेज की घोषणा की रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने भी रेपो रेट और रिवर्स रेपो रटे में भी कटौती कर दी की  देश की जनता पर लोन की इंस्टॉल्मेंट का बोझ न पड़े और इस मुश्किल से देश को जल्द से जल्द  बचाया जा सके , इस रोग की अभी कोई दवा नहीं है सिर्फ सोशल डिस्टन्सिंग ही एक मात्र इलाज है जिसके चलते सरकार ने विकास का मोह त्याग कर सब जगह बंदी कर दी, की जल्द से जल्द हालत काबू में हो सके और फिर विकाश की गाड़ी को चलाया जा सके, लेकिन हालत को देखते हुए लग रहा है की सिर्फ 21 दिन ही नहीं और भी ज्यादा समय के लिए लॉक डाउन की जरूरत पड़ेगी ऐसे में सवाल ये खड़ा होता की अर्थ व्यवस्था का क्या होगा, जो पहले से ही बद से बतर थी और इस कोरोना के चलते और बिगड़ती नज़र आ रही है, जो हालत मौजूदा समय में देश में बने है उसके हिसाब से देश को कोरोना की लड़ाई के बाद अगली जंग मंदी  से लड़नी पड़ेगी जो की आने वाले समय में गंभीर समस्या का रूप ले सकती है। जो अंत में इस बात पर सोचने के लिए मजबूर करती है की जो सपना 5 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी को तय करने के लिए रखा गया था क्या वो अपने तय समय पर उस लक्ष्य तक पहुंच पायेगा और क्या दुबारा भारत के आर्थिक हालत अपने यथा-स्थान पर वापस आ पाएंगे ?

Kaushlendra Raj Shukla
BAMC-ii 

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