कोरोना से विभिन्न अवसर लेने का समय।



उसके लिए अवसर का क्या महत्व जो उपयोग ही ना जानता हो

आपदा आना कुदरत को किसी न किसी तरह से ठेस पहुंचाने का परिणाम माना जाता है चूकि कुदरत भी किस तरह अपना रहस्यमई  रोष ,अभिव्यक्ति कैसे जाहिर करेगा जो हमारे द्वारा उसके लिए अनुकूल नहीं है इसका आभास हमें होना भी जरूरी है लेकिन इससे भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि वर्तमान युग में तंत्र ज्ञान का खेल खेला जाता है . अब तो कला विज्ञान में कुदरत भी पीछे धकेला जा रहा है। मानव निर्मित इन शिल्प ज्ञान को आपदा/त्रासदी का नाम देना भी ठीक नहीं है। ख़ैर बात करते है  वर्तमान में  कोरोना वायरस के चलते 21 दिनों के लॉक डाउन को हम किस तरह अवसर के रूप में ले सकते हैं।

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कोरोना वायरस के खात्मे के लिए लॉक डाउन  के चलते सभी को जरूरतमंद समान ही उपलब्ध कराए जा रहे हैं जिसमें मनचाहे लोगों को नशे की सामग्री नहीं मिल रही हैं। एक तरफ यह एक आस है और दूसरी तरफ इच्छा शक्ति की परीक्षा डॉक्टरों की माने तो नशा करने वाले को भी सावधानी बरतनी होगी उन्हें नशा छोड़ने के अवसर के  तौर पर वैकल्पिक तरीके अपनाने होंगे।
बीआरडी  मेडिकल कॉलेज गोरखपुर के नशा मुक्ति केंद्र के डॉक्टर आमिल हसन खान कहते हैं कि यदि नशा करने वाले को नशीले पदार्थ उपलब्ध नहीं होते है तो विद ड्रॉल पीरियड (नशा न मिलने पर होने वाली घबराहट) खत्म होने तक उसे धैर्य रखना होगा।

नशा असर और कदम
तम्बाकू:इसका विद ड्राल कम होता है । दो से तीन दिन में यह शुरू हो जाता है । बेचैनी और तनाव होता है । एक हफ्ते तक  यदि  इसे  बर्दाशत कर लिया तो यह आदत छूट जाती है।

शराब: इस नशे में भी विद ड्राल पीरियड कम से कम तीन दिन बाद शुरू हो जाता है। अधिक सेवन करने वाले को बदन दर्द होता है या नींद ना आने की समस्या पैदा होती है। ऐसी स्थिति में दवाओं  का सहारा लिया जा सकता हैं और दस दिन बाद खुद पर नियंत्रण करके यह आदत छुड़ाई जा सकती है।

अफीम: इस नशे का सेवन करने वालों के साथ परेशानी ज्यादा होती है। दो दिन बाद असर दिखने लगता हैं डायरिया और कपकपाहट होती है, शरीर टूटने लगता हैं। ऐसी स्थिति में सामान्य दर्द निवारक दवाएं ली जा सकती है। दिमाग दूसरे कामों में लगा सकते हैं। दस दिन तक स्थिति में काबू पा लिया तो इस नशे को छोड़ने की संभावना बढ़ जाती हैं।

इसे कॉल टर्की ही समझे:
नशा मुक्ति केंद्र में ज्यादा जगहों में कोल्ड टर्की तरीके से इलाज में  सफलता  मिली है। रोहतक में पीजीआई के इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हैल्थ के डायरेक्टर राजीव गुप्ता इस समय को स्वप्रेरणा का दौर कहते हैं । उन्होंने कहा कि जब मरीज कोल्ड टर्की से सही हो सकते हैं तो यह दौर उनके लिए बेहद उपयुक्त हैं। कोल्ड टर्की में नशा छुड़ाने के लिए उन्हें विकल्प के तौर पर कुछ नहीं दिया जाता । इस समय परिजन उन्हें टास्क देकर उनका ध्यान भटका सकते हैं।

Nikita Thaguna
BAMC-iv 

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